Friday, March 20, 2020

Nature's Curfew

                        प्रकृति घोषित कर्फ्यू



क्या पहाड़, क्या पगडंडियां, क्या सड़कें, क्या गांव, क्या शहर, हर जगह सन्नाटा पसरा हुआ है. खुद को सर्वोपरि मान बैठे मनुष्य पर सर्वशक्तिमान प्रकृति ने अघोषित कर्फ्यू लगा दिया है. मनुष्य की प्रकृति के हर कोने पर पहुँचने व स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन करने की लालसा पर सृष्टि ने ऐसा कुठाराघात किया है कि मानव सम्भले नहीं संभल पा रहा हैं. कभी खचाखच भरे हुए बाजार, पर्यटन स्थल, मॉल्स, सिनेमाघर आज सूनसान पड़े हुए हैं. मानो प्रकृति कह रही हो कि मानव तू मेरे आगे कुछ नहीं है. सृष्टि के कोप ने कोरोना विषाणु के रूप में प्रतिरूपित होकर रौद्र रूप दिखाया है.
इतिहास गवाह है जब धरती पर बोझ बढ़ जाता है तो प्रकृति खुद इसका हल निकलती है. हर 100 साल में भयंकर महामारी फैलती है और लाखों लोगों को लील लेती है. 1720 में मर्सल्लिए में प्लेग फैला था जिसने एक लाख लोगों को लील लिया था, 1820 में भारत के कलकत्ता से फैले हैज़ा ने महामारी का रूप ले लिया और इसमें कितने लोगों ने अपनी जान गवाई इसका कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, 1920 में स्पेनिश फ्लू ने पांच करोड़ लोगों को खत्म कर दिया था, और इस शताब्दी में कोरोना विषाणु महामारी घोषित हो चुकी है. भले ही यह घातक बीमारी चीन की देन हो, लेकिन इसे फ़ैलाने में देशी-विदेशी नागरिकों ने कोई ‌कसर नहीं छोड़ी. मानव इस बीमारी के विषाणु लेकर दुनिया भर में बेझिझक घूमा, नतीजतन अब यह दुनिया के 195  में से  181 देशों में फ़ैल चुका है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि इससे बचने की दवा और टीका अभी विकसित ही नहीं हो पाएं हैं, तो स्वाभाविक है कि इसे काबू करना सबसे बड़ी चुनौती है. छूत की बीमारी होने की वजह से यह बहुत तेज़ी  से फ़ैल रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से घोषित हो चुकी इस महामारी के बढ़ते कदम को देखते हुए सरकारों ने यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है. वैदिक रीति-रिवाज़ों का देश होने के नाते भारत में कभी भी धार्मिक यात्राओं को प्रतिबंधित नहीं किया गया, ना ही मंदिरों को बंद किया गया, लेकिन भयावह होती स्थिति पर काबू पाने के लिए यह कदम उठाने पड़े हैं. पूरे देश में धारा 144 जैसी स्थिति है. स्कूल-कॉलेज, दफ़्तर, सिनेमाघर, मॉल्स, पार्क को ऐतिहातन  बंद कर दिया गया है. सार्वजनिक सभाओं, शादियों, आदि को भी टाल दिया गया है. सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत कर्मचारी ही आम दिनों तरह अपनी ड्यूटी दे  रहे हैं, उनको सलाम!
मानव के लिए अपना अस्तित्व बचाने के लिए "मरता क्या नहीं करता" वाली स्थिति उत्पन्न हो गयी है. इसलिए  "सावधानी ही बचाव" की नीति को अपनाते हुए इस  भयंकर महामारी को धता बताई जा सकती है.
कोरोना विषाणु का जीवन काल 12 घंटे होता है, इसलिए जितना हो सके बाहर जाने से बचें। साफ़-सफाई, व्यक्तिगत दूरी व यात्रा टालना ही समझदारी है. मास्क, ग्लव्स, आदि से अपना बचाव करें, खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखें.

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