Sunday, June 14, 2020

How life would be after Corona pandemic


                                                       

 

                    कोरोना के दौर के बाद बदली-बदली सी नजर आएगी दुनिया

कोरोना महामारी ने दुनिया के तौर तरीकों को बदलने पर मजबूर कर दिया है। आने वाले दिनों में चीजें पहली जैसी नहीं रहेंगी। विश्लेषकों का मानना है कि जैसा विश्व युद्ध के पहले की दुनिया और बाद की दुनिया में दुनिया का उल्लेख किया जाता है वैसे ही कोरोना के पहले की दुनिया और बाद की दुनिया में इसका उल्लेख किया जाएगा। विश्लेषक मानते हैं कि कोरोना के बाद दुनिया में बड़े स्तर पर बदलाव आ सकता है, और वह बदलाव ऐसा होगा जैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला होगा। यह बदलाव पाॅजिटिव भी होगा और निगेटिव भी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस महामारी ने दुनिया पर कितना गहरा प्रभाव छोड़ा है। कार्नेगी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस संस्थान के सीनियर फेलो हारून डेविड मिलर के अनुसार, नई दुनिया कैसे होगी यह इस बात पर बहुत निर्भर करेगा कि कोरोना से लड़ने के लिए दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं किस तरह के कदम उठाती हैं, और कोरोना के खतरों से निपटने में इन देशों की सरकारों का प्रदर्शन कैसा रहता है।

1-वैश्विक महामारी लोगों में राष्ट्रीय एकता बढ़ाएगी

कोरोना वायरस मानव जाति का ऐसा दुश्मन है जो जाति, रंग, क्षेत्र या हैसियत देखा बिना प्रभावित कर रहा है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर पीटर टी. कोलमेन के अनुसार, इससे दुनिया भर में ध्रुवीकरण की राजनीति खत्म हो जाएगी। इसका असर अमेरिकी चुनाव में साफ नजर आ जाएगा। प्रो. कोलमेन के अनुसार, ये महामारी लोगों में थोड़ी आदर्ष स्थिति ला सकती है, जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ाएगी। लेकिन ऐसा सोचने के दो अहम कारण हैं, पहला सभी का एक ही दुश्मन होना, लोग एक ही दुश्मन होने पर अपने पुराने बैर को भूलकर उससे निपटने के लिए एकजुट हो जाते हैं। दूसरा कारण, कोरोना वायरस यहीं खत्म नहीं होगा, जब कोरोना वायरस वेव-2 आएगी तो संबंधों के पैटर्न में बदलाव आएगा और मौजूदा व्यवस्थाओं को तगड़े झटके लगेंगे। सामाजिक झटके कई स्तर पर बदलाव लाते हैं। इससे चीजें बेहतर के साथ खराब भी होती हैं। 1816 से 1992 के बीच किए गए शोध के मुताबिक, 850 अंतरराष्ट्रीय विवादों में 75 फीसदी मामले शुरुआती 10 साल के भीतर ही खत्म हो गए। कोविड-19 को लेकर तनाव के कारण सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव होना तय है। साफ नजर आ रहा है कि बदलाव होने की जमीन तैयार हो रही है।

2-तकनीक का बेहतर इस्तेमाल होगा

विशेषज्ञों का कहना है कि संकट के हालात बहुत से अवसर भी तैयार करता है. तकनीक का बेहतर इस्तेमाल होगा. लोग बहुत जरूरी होने पर ही घर से बाहर निकलेंगे। इससे ध्रुवीकरण की आशंका कम रहेगी। लोगों के एंज्वाय करने के तरीकों में तेजी से बदलाव होगा। लोग ज्यादातर चीजों के लिए तकनीक पर निर्भर होंगे। हालांकि, इस बारे में स्पष्ट तौर पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. फिर भी मौजूदा हालात को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि लोगों के जीवन में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

3-मैन्युफैैक्चरिंग उद्योग का भारत में फैैलाव होगा

कोरोना महामारी की वजह से भारत को एक फायदा होता दिख रहा है। सस्ती मजदूरी की बहुतायत की वजह से यहां पर दुनियाभर से मैन्युफैक्चरिंग के प्रस्ताव के आसार नजर आ रहे हैं। इसका एक उदाहरण है उत्तर प्रदेश में जर्मनी की जूता कंपनी का आना प्रस्तावित। ऐसे ही कई और उद्योग सही समय का इंतजार कर रहे हैं जब वह भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाएं। इससे देष में बड़े स्तर पर आई आर्थिक मंदी और बेरोजगारी से छूटकारा पाने में मदद मिलेगी। 

4-होंगे कई तरह के डिसऑर्डर

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह अकेले नहीं रह सकता। लेकिन कोरोना महामारी ने लोगों को अपने घरों में सीमित रहने को मजबूर कर दिया है। जॉर्जटाउन में भाषाओं के प्रोफेसर और लेखक डेबोर टैनन कहते हैं कि हमारे वर्तमान में होने वाली घटनाएं हमारे अतीत से ही प्रभावित होती हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के इस दौर में 1918 में वैश्विक महामारी लाने वाले फ्लू की यादें बार-बार ताजा हो रही हैं। हम अक्सर अपने अतीत से मिले सबक भूल जाते हैं। अब अचानक हमें याद आ रहा है कि चीजों को छूना, समूहों में लोगों के साथ रहना और संक्रमित हवा में सांस लेना भी हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। चीजों को छूने से परहेज करना, लोगों से हाथ मिलाने से कतराना, बार-बार हाथ धोना और सोसाइटी से कटकर रहना आने वाले समय में लोगों में डिसऑर्डर की तरह सामने आ सकता है। लोग किसी की मौजूदगी के बजाय अकेले रहने में ज्यादा सुकून महसूस करने लगेंगे। ऑनलाइन कम्युनिकेशन बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है जिससे लोगों के बीच दूरियां बढ़ती चली जाएंगी। हालांकि, हम एक दूसरे का हालचाल जानने के लिए अब के मुकाबले ज्यादा बातचीत करने लगेंगे।

5-व्यवसाय के तरीके बदलेंगे 

कोरोना का प्रकोप सारी दुनिया को बदलकर रख देने वाला है। व्यापार में बदलाव होगा। उद्यमी अपने बिजनेस मॉडल और अन्य कार्यों का पुनर्खोज करेंगे। उन सभी कार्यों को, जिनका ग्राहक के लिए कोई मूल्य नहीं है, समाप्त कर दिया जाएगा, इसलिए महत्वपूर्ण और राजस्व उत्पन्न करने वाले कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जिससे व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाया जा सकेगा। ईआरपी टूल्स का उपयोग पहले से कहीं अधिक किया जाएगा ताकि आमने-सामने बात-चीत और अपडेट कम से कम करने पड़ें। कोरोना वायरस प्रकोप के बाद, व्यवसायों को अज्ञात जोखिमों से बचने के लिए कई बीमा लेने होंगे। नए बाजारों में विस्तार से संबंधित निर्णय तेजी से लिए जाएंगे। कंपनियां विभिन्न कार्यों के लिए लागत में कटौती के उपायों की ओर अग्रसर होंगी, जिन्हें आवश्यक होने पर आउटसोर्स किया जा सकता है। 

6-देश अपनी सीमाओं में हो जाएंगे सीमित 

कोरोना वायरस हमारे घरों में कई महीनों तक मौजूद रह सकता है. इससे लोगों के सरकार के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा। लोग खुद सरकार के प्रति अपने रवैये में बदलाव लाकर सहयोग करेंगे। वहीं, बाहरी दुनिया और आपस के व्यवहार में समय के साथ बड़ा फर्क आएगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कुछ बदलाव तो कुछ महीनों के भीतर ही नजर आने लगेंगे। वहीं, कुछ बड़े बदलावों में थोड़ा वक्त लगेगा। लोग देश की सीमाओं को बंद करने और अन्य देशों से सीधे संपर्क के बारे में हर पहलू से सोचने को मजबूर होंगे। 

7-वर्क फ्रोम होम का कल्चर हावी होगा

कोरोना वायरस के चलते मजबूरी में लागू किया गया यह वर्क फ्रॉम होम का विकल्प अगर काम कर गया तो यह ऑफिस वर्किंग की दुनिया को पूरी बदल सकता है। बड़ी-बड़ी कंपनियों का कहना है कि वर्चुअल वर्कप्लेस ही भविष्य है। बैंक के लिए कस्टमर सर्विसेज रोल्स, फोन बैंकिंग, एचआर और कॉरपोरेट ऑफिस फंक्शंस जैसे कार्यों को सबसे पहले रिमोट वर्किंग के लिए तवज्जो दी जा सकती है जिनमें ग्राहकों से मीटिंग करने की जरूरत नहीं पड़ती है। आगे चलकर करीब 20-30 पर्सेंट लोग वर्चुअली यानी कहीं से काम कर सकते हैं। पिछले कुछ हफ्तों से कंपनियां आईटी सिस्टम को बेहतर करने में जी-जान से जुटी हैं जो वर्चुअल वर्कप्लेस को अपनाने में अब तक की सबसे महत्वपूर्ण अड़चन रही है। पहले जो भी कंपनियां इससे दूर भागती थीं, उन्हें अब आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त होने के साथ कोई समस्या नहीं होगी। एचआर हेड्स का यह भी कहना है कि हॉट-डेस्किंग जैसी व्यवस्था कॉमन हो जाएगी जिससे एस्टैब्लिशमेंट कॉस्ट में कमी आएगी।

8- स्कूल-काॅलेजों की पढ़ाई ऑनलाइन हो जाएगी 

कोरोना महामारी ने ऑनलाइन पढ़ाई के लिए रास्ते खोल दिए हैं। लाॅकडाउन के दौरान किया गया ऑनलाइन क्लासेस का एक्सपेरिमेंट अब एक बड़े बदलाव के रूप में सामने आएगा जो पढ़ाई के तरीके को पूरी तरह से बदल कर रख देगा। स्कूल और कालेजों में पढ़ाई करने के लिए डिजिटल माध्यम का प्रयोग और अधिक होने लगेगा। एजूकेशनल गोल्स को हासिल करने के लिए व्हाट्सएप्प, जूम,टीम जैसे ऐप और ईमेल का प्रयोग बढ़ेगा। स्कूल और काॅलेज ऐसे इंफ्रस्ट्रक्चर को डेवलप करेंगे जिससे टीचर और स्टूडेंट कैंपस में नहीं रहते हुए भी पढ़ाई कर सकेंगे। नामी शिक्षण संस्थान परीक्षा के पारंपरिक तरीकों की बजाय ऑनलाइन माध्यम से छात्रों का मूल्यांकन करेंगे।

9-इबादत के तरीकों में बदलाव आएगा

इंसान कितना ही परेशान क्यों न हो, वह अपनी इबादत, पूजा-पाठ करना नहीं छोड़ता। इतिहास गवाह है कि लोगों ने युद्ध के दौरान, भी अपनी पूजा को जारी रखा। लेकिन यह महामारी इस बार कुछ अलग ही स्थिति दिखा रही है। कोरोना वायरस से लोगों के पूजा-पाठ करने के तरीके भी बदल जाएंगे। हर धर्म में किसी भी त्योहार को सामाजिक तरीके से मिल-जुलकर मनाया जाता है। ईस्टर पर लोग इकट्ठे होकर चर्च जाते हैं। मुस्लिम परिवार रमजान में मस्जिद में नमाज अता कर रोजा खोलते हैं। हिंदू धर्म को मानने वाले नवरात्रों में मंदिर जाकर पूजा-पाठ किए जाते हैं। लेकिन आने वाले समय में यह सब बदल सकता है। वोट कॉमन गुड की निदेशक एमी सुलिवन का कहना है- मौजूदा समय में सभी मान्यताओं पर जिंदा रहने की जंग हावी हो चुकी है। कोरोना वायरस हर धर्म के मानने वालों के पूजा-पाठ के तरीकों को बदलकर रख देगा। मानवता की बेहतरी के लिए फिलहाल इन तौर-तरीकों का बदल जाना ही बेहतर है।

10- पर्यटन का अंदाज बदल जाएगा

पर्यटन का तरीका बिलकुल बदलने वाला है। लोग पहले की तरह समूहों में नहीं बल्कि अकेले यात्राएं करना पसंद करेंगे। हो सकता है कि आपको यह बात अटपटी लगे लेकिन समय को देखते हुए यही तरीका सेफ रहने वाला है। पर्यटक छोटी-छोटी यात्राओं की जगह लोग लंबी यात्रा का पैकेज लेंगे जो सस्ता तो होगा ही साथ ही एक ही ट्रिप में कई देषों के दर्षन कराएगा। लोग होटलों की बजाए सस्ते कोटोज में रहना पसंद करेंगे जिससे वह एकांत में रह सकें और अपनी यात्रा को एंज्वाॅय कर सकें। 


Sunday, June 7, 2020

Get Back on Track After Lockdown


भागदौड़ भरी जिंदगी के लिए फिर से हो जाएं तैयार

 

गोलगप्पे, जलेबी, छोले भटूरे और न जाने क्या-क्या. यही सब तो किया हमने लाॅकडाउन के दौरान. वह बात अलग है कि आफिस भी घर पर चलता रहा लेकिन घर में खुला रेस्टोरेंटभी हमारी जुबान को पकवान का स्वाद चखाता रहा. इसका नतीजा हुआ बढ़ा हुआ वजन और सुस्त व्यवहार. खैर, अब जब धीरे-धीरे आफिसेज खुल रहे हैं तो हमें भी फिर से चुस्त और फुर्तीला होना पड़ेगा. इसके लिए खाने-पीने की आदतों के साथ रूटीन में भी बदलाव करना होगा. हम यहां एक्सपट्र्स द्वारा सुझाए दिए कुछ टिप्स शेयर कर रहे हैं जो आपको बैक आॅन ट्रैकले आएंगे.  

स्मूदीज बनाइए, एनर्जी को बूस्ट करिए

यकीन जानिए जो स्मूदीज आपको बेहद स्वादिष्ट लगती हैं वह आपको एक्टिव रखने का भी काम करती हैं. इन दिनों खूब फल और सब्जियां खाइए क्योंकि इनमें मौजूद फाइबर और ढेर सारे विटामिन आपकी एनर्जी बूस्ट करेंगे जिससे आप एक्टिव बने रहेंगे और फिर से आफिस के काम को समय पर निपटा सकेंगे.

बाॅडी को रखें हाइड्रेटेड

जब भी आप घर से बाहर जाएं या फिर कहीं से आएं तो कुछ दिन तक पानी पीने का रूटीन बना लें. साथ ही ज्यादा वाटर कंटेंट वाली चीजें जैसे सलाद, बेरी, टमाटर और खीरा आदि को खाने में शामिल करें. इससे ट्रैवलिंग के दौरान होने वाली पानी की कमी से बचाव होगा. इसके साथ ही यह लाॅकडाउन के दौरान बिन बुलाए मेहमान की तरह आने वाली आपकी पेट की चर्बी को पिघलाने में मदद करेगा. लाॅकडाउन के दौरान दिन में कई बार कुछ-कुछ खाने से जो हमारा हाजमा खराब हुआ है उसे भी दुरूस्त करने में पानी करिष्माई है. तो आप पहले से भी ज्यादा एक्टिव और स्मार्ट दिखना चाहते हैं तो दिन में आठ-14 गिलास पानी पीएं और लोगों को काम्पलीमेंट करने दें.

सादा हो तीनों समय का खाना

ब्रेकफास्ट में अंडे, दूध, अंकुरित अनाज, ग्रीन टी, काॅफी लेना बेहतर रहेगा.

कोशिश करें कि रात का खाना हैवी नहीं हो. हो सके तो इस समय ओट्स, दूध और फल खाकर दिनचर्या को विराम दें. दिन में सलाद और चने, राजमा, छोले जैसे अनाजों के साथ सब्जियों को खाने की आदत डालें. बीच में कुछ खाने का मन हो तो दही ले सकते हैं. ड्राई फ्रूट्स इंस्टेंट एनर्जी देते हैं, तो इन्हें भी अपनी डाइट में शामिल करें. इससे आपकी बाॅडी में न्यूट्रीशन मेनटेन रहेगा.

ड्रिंक्स और मीठे से बनाएं दूरी

ड्रिंक्स और मीठे के शौकीन हैं तो इस पर आपको कांप्रोमाइज करना होगा. लाॅकडाउन से पहले ड्रिंक्स और पार्टी आपकी लाइफस्टाइल का भले ही हिस्सा रहे हों लेकिन यह समय इनसे दूर रहने का है. क्योंकि सिडेंटरी लाइफस्टाइल से एकदम से फास्ट लाइफस्टाइल में आने से बाॅडी में बहुत से चेंजेज आते हैं, इसमें हाई ब्लड प्रैशर और बढ़े हुए शुगर लेवल की सबसे आम शिकायत रहती है, जो गंभीर स्थिति में हार्ट अटैक, स्ट्रोक, व किडनी और नसों से संबंधित बीमारियों को न्यौता दे सकती है. इसलिए ड्रिंक्स और अधिक मीठा खाने से दूरी बनाने में ही समझदारी है.

लाॅकडाउन के दौरान एक्सरसाइज के लिए खूब समय मिला. लेकिन अब जब आफिस की भागदौड़ शुरू होगी तो इसके समय में कटौती होगी इसलिए बेहतर होगा कि सभी एक्सरसाइजेज का समय थोड़ा-थोड़ा कम करके कोषिष करें कि कोई भी स्किप नहीं हो.

वाक को जारी रखें

अगर आप वाक करना चाहते हैं तो इसका तरीका बदल दीजिए. आफिस से दूर रहते हैं तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट लीजिए और दूरी का कुछ हिस्सा पैदल ही पूरा कीजिए. पर याद रहे कि गर्मी के इस मौसम में बाॅडी में पानी की कमी नहीं होने पाए. अगर आप वाक घर पर करना चाहते हैं तो सुबह आधे घंटे पहले उठकर इस टारगेट को पूरा कर सकते हैं.

योग से मेंटल स्ट्रेंथ बढ़ेगी

लाॅकडाउन के दौरान लोगों ने योग को अपने लिविंग रूम में ही किया, काफी लोगों ने लाॅकडाउन के दौरान योग को करना शुरू किया और अपने में बदलाव महसूस किए. किसी ने आनलाइन क्लासेज लीं तो किसी ने सोशल मीडिया के जरिए स्वस्थ्य रहने के इस तरीके को अपनाया. योग को जीवन का हिस्सा बनाने के लिए लाॅकडाउन के खत्म होने के बाद आप योग की क्लासेज या फिर योग के इंस्टीट्यूट को ज्वाइन कर सकते हैं, या फिर चाहे तो घर पर ही इसे कंटीन्यू कर सकते हैं. योग फिजिकल के साथ मेंटल स्ट्रेंथ में भी बढोतरी करता है इसलिए इसे कंटीन्यू करना ही बेहतर होगा.

जिम का रहे रूटीन

महीनों बाद जिम का रूख करना सुकून का एहसास देगा. लेकिन एक लंबे वक्त के बाद हैवी एक्सारसाइज करने से बचें और शुरूआत लाइट एक्सरसाइज से करें. धीरे-धीरे अपनी रूटीन वाली एक्सरसाइज पर आएं जिससे आपकी बाॅडी पर गलत प्रभाव नहीं पड़े. इस दौरान अपने ट्रेनर से डाइट प्लान जरूर डिस्कस करें और लाॅकडाउन के बाद अपनी हैल्थ को मेंटेन रखें.

 

लाॅकडाउन के दौरान हम सभी को परिवार की अहमियत मालूम पड़ी. लेकिन लाॅकडाउन खुलते ही हम सभी अपनी-अपनी लाइफ में फिर से बिजी होने वाले हैं ऐसे में बेहतर होगा कि ऐसा रूटीन बनाएं जिससे हमारी एक्सरसाइज और फूड हैबिट्स पर कोई निगेटिव इफैक्ट नहीं हो.

 

 


Friday, March 20, 2020

Nature's Curfew

                        प्रकृति घोषित कर्फ्यू



क्या पहाड़, क्या पगडंडियां, क्या सड़कें, क्या गांव, क्या शहर, हर जगह सन्नाटा पसरा हुआ है. खुद को सर्वोपरि मान बैठे मनुष्य पर सर्वशक्तिमान प्रकृति ने अघोषित कर्फ्यू लगा दिया है. मनुष्य की प्रकृति के हर कोने पर पहुँचने व स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन करने की लालसा पर सृष्टि ने ऐसा कुठाराघात किया है कि मानव सम्भले नहीं संभल पा रहा हैं. कभी खचाखच भरे हुए बाजार, पर्यटन स्थल, मॉल्स, सिनेमाघर आज सूनसान पड़े हुए हैं. मानो प्रकृति कह रही हो कि मानव तू मेरे आगे कुछ नहीं है. सृष्टि के कोप ने कोरोना विषाणु के रूप में प्रतिरूपित होकर रौद्र रूप दिखाया है.
इतिहास गवाह है जब धरती पर बोझ बढ़ जाता है तो प्रकृति खुद इसका हल निकलती है. हर 100 साल में भयंकर महामारी फैलती है और लाखों लोगों को लील लेती है. 1720 में मर्सल्लिए में प्लेग फैला था जिसने एक लाख लोगों को लील लिया था, 1820 में भारत के कलकत्ता से फैले हैज़ा ने महामारी का रूप ले लिया और इसमें कितने लोगों ने अपनी जान गवाई इसका कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, 1920 में स्पेनिश फ्लू ने पांच करोड़ लोगों को खत्म कर दिया था, और इस शताब्दी में कोरोना विषाणु महामारी घोषित हो चुकी है. भले ही यह घातक बीमारी चीन की देन हो, लेकिन इसे फ़ैलाने में देशी-विदेशी नागरिकों ने कोई ‌कसर नहीं छोड़ी. मानव इस बीमारी के विषाणु लेकर दुनिया भर में बेझिझक घूमा, नतीजतन अब यह दुनिया के 195  में से  181 देशों में फ़ैल चुका है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि इससे बचने की दवा और टीका अभी विकसित ही नहीं हो पाएं हैं, तो स्वाभाविक है कि इसे काबू करना सबसे बड़ी चुनौती है. छूत की बीमारी होने की वजह से यह बहुत तेज़ी  से फ़ैल रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से घोषित हो चुकी इस महामारी के बढ़ते कदम को देखते हुए सरकारों ने यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है. वैदिक रीति-रिवाज़ों का देश होने के नाते भारत में कभी भी धार्मिक यात्राओं को प्रतिबंधित नहीं किया गया, ना ही मंदिरों को बंद किया गया, लेकिन भयावह होती स्थिति पर काबू पाने के लिए यह कदम उठाने पड़े हैं. पूरे देश में धारा 144 जैसी स्थिति है. स्कूल-कॉलेज, दफ़्तर, सिनेमाघर, मॉल्स, पार्क को ऐतिहातन  बंद कर दिया गया है. सार्वजनिक सभाओं, शादियों, आदि को भी टाल दिया गया है. सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत कर्मचारी ही आम दिनों तरह अपनी ड्यूटी दे  रहे हैं, उनको सलाम!
मानव के लिए अपना अस्तित्व बचाने के लिए "मरता क्या नहीं करता" वाली स्थिति उत्पन्न हो गयी है. इसलिए  "सावधानी ही बचाव" की नीति को अपनाते हुए इस  भयंकर महामारी को धता बताई जा सकती है.
कोरोना विषाणु का जीवन काल 12 घंटे होता है, इसलिए जितना हो सके बाहर जाने से बचें। साफ़-सफाई, व्यक्तिगत दूरी व यात्रा टालना ही समझदारी है. मास्क, ग्लव्स, आदि से अपना बचाव करें, खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखें.

#Coronavirusoutbreak, #Pandemic2020 #WHO #Stayathome #India #Healthtragedy2020

Tuesday, November 14, 2017

Save water bodies to save paradise on earth


Global warming has affected every part of the world. Our country India is also not untouched by its consequences and so our lives. Kashmir, which is called 'heaven on earth', has also come under its jute.
While the governments are busy fighting on land rights, it is more dangerously attacked by the hazardous outcome of global warming. Due to this climatic change, the alpine forests present in the Kashmir valley are on the verge of extinction, and in turn, the troposphere of the area is also gradually declining. These all adverse conditions are affecting the small and big rivers and lakes of the valley. There were 60 small water streams in Srinagar, but global warming is taking a toll on them. Wular lake is the largest lake of sweet water in India. But its condition has also worsened. Pakistan has occupied 80% of the lake. The most popular Dal Lake is also in a depleted condition. It is another victim of the devastating climate change. If we have to save our existence, then these water bodies will have to be saved. In 2014, the flood in the valley has ruined a lot. It is these water bodies that have saved the lives of thousands of people living in the Kashmir valley during the flood disaster. If there was no Wular lake during the flood then there would not be anything there today. It is the quality of the Wular lake to broaden or shrunken its area according to the need. To your knowledge, this lake can adjust its area from 30 square kilometers to 260 square kilometers. And that particular quality has saved human life in the region during the disaster. That's why we must save our water bodies to save our existence.
Due to the degradation of the ecosystem, climatic changes are taking place in the region. The devastating floods were the result of global warming. The floods ruined life in the valley in 2014, followed by too much rain in 2015 and then there was no rain in 2016. This is how the Kashmir valley is facing severe climatic changes. For the past few years, changes in the time of snowfall are also getting noticed. 25 years ago, snow fell from October to March and its density used to be two to four feet, and it was almost impossible to go out, but now this scene is nowhere to be seen. In the year 2017, the snow fell in April and this has been going on for some time now due to which there has been a deep impact on the crop cultivation in the valley. The famous yield of saffron and cherry crop is suffering a lot. The world's best variety of saffron is grown in the Pamphore area of ​​the valley, it is believed that there is 70 percent lenilol is found in saffron cultivated in this region while as far as other countries' saffron are concerned, it is believed to be 50 percent only. This is the reason why Kashmir's saffron is considered to be the best. But due to climate change, the yield of saffron has also declined to almost half. At one time, a farmer of saffron used to cultivate three to four kgs of saffron in a season and became the owner of two to three lakh rupees by selling just one kilo, but now he has to be satisfied only at half the price since the yield has also declined. The same condition is with cherry, peach, and apple. From the last five to seven years, snow starts falling during the flowering season of these plants and spoils the crop. It is a sad story that at one time the farmers who used earn lakhs from the cultivation of these varieties are now considering to switch to sow other varieties of vegetables and fruits for their survival. Even some farmers are forced to earn their living through NREGA scheme due to less or no cultivation. Now, understand why such adverse conditions are faced by saffron farmers. Saffron is a plant that can not grow through artificial irrigation. It can only be cultivated through natural irrigation. From the last eight-nine years, the untimely rain is badly affecting its crop, due to which its yield is continuously declining. We will have to understand that with the end of crop cultivation, the economy of the valley will also come to an end because around 95 percent of the population is dependent on the water-based and its allied sources. With the end of water streams, the rapid melting of glaciers is also a concern. The floods ruined life in the valley in 2014, followed by too much rain in 2015 and then there was almost no rain in 2016. This is how the Kashmir valley is facing severe climatic changes. Conditions are alarming and there is a need to take action in the valley. Otherwise, we would read 'Paradise on this earth' only in the books in the time to come.

Hindi version of the article follows next. 
#savetheearth #globalwarming #Pamphoredistrict #alpineforests #vergeofextinction #Cherrycultivation #Saffroncultivation 

धरती के स्वर्ग का अस्तित्व खतरे में


ग्लोबल वार्मिंग ने दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित किया है. हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है.  धरती पर स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर भी इसकी जद में आ गया है. कश्मीर घाटी में मौजूद अल्पाइन के जंगल खत्म होने के कगार पर हैं जिसकी वजह से क्षोभ मंडल भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. इसका सीधा असर घाटी में स्थित छोटी बड़ी सभी प्रकार की नदियों और झीलों पर पड़ रहा है. श्रीनगर में ६० छोटी-बड़ी जल धाराएं हैं. यह भी धीरे-धीरे ख़त्म रहीं हैं. वुल्हर झील भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है. लेकिन इसकी स्थिति भी बिगड़ गयी है. झील के ८० प्रतिशत छेत्र पर कब्ज़ा हो चुका है. वहीँ, ढल झील भी बीमार है. उसे भी जलवायु परिवर्तन ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है. हमें अगर अपना अस्तित्व बचाना है तो इन जल धाराओं को बचाना ही पड़ेगा.२०१४ में घाटी में आयी बाढ़ ने बहुत कुछ तबाह कर दिया. जितना बच गया वह हमारी झीलों की वजह से. अगर वुल्हर झील नहीं होती तो आज वहां  कुछ नहीं होता. वुलर झील मौसम के अनुसार अपने छेत्रफल में बदलाव करती रहती है. यह ३० वर्ग किलोमीटर से २६० किलोमीटर तक अपने आकार को बदल लेती है. इसलिए अभी भी समय है सचेत हो जाएँ, हमें अपना जीवन बचाने के लिए जल धाराओं को बचाना ही होगा.
पारिस्थितिकी तंत्र के बिगड़ जाने से इस इलाके की जलवायु में भी बदलाव देखा जा रहा है. पिछले कुछ सालों से बर्फ गिरने के समय में परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आज से करीब २५ साल पहले बर्फ अक्टूबर से मार्च तक गिरती थी और इसका घनत्व दो से चार फ़ीट तक हुआ करता था, लेकिन अब ऐसा देखने को नहीं मिलता. 2017 में अप्रैल माह में बर्फ गिरी और पिछले कुछ समय से ऐसा ही हो रहा है इससे घाटी में फसलों की बोवाई पर भी गहरा असर पड़ा है. यहां की मशहूर पैदावार केसर, पीच और चेरी की फसल को बहुत नुक्सान हो रहा है. घाटी के पम्पोर इलाके में दुनिया की उत्तम किस्म की केसर उगाई जाती है, माना जाता है कि यहाँ की केसर में  ७० प्रतिशत लेनिलोल पाया जाता है, वहीँ दूसरे देशों  की केसर में यह 50 प्रतिशत ही होता है. यही वजह है कि यहाँ की केसर को सर्वोत्तम माना जाता है. लेकिन इस जलवायु परिवर्तन की वजह से केसर की उपज भी आधी रह गयी है. एक समय केसर का किसान तीन से चार किलो केसर उगा लेता था और उसे एक किलो पर दो से तीन लाख रूपए मिल जाया करते थे, लेकिन अब उन्हें इसकी आधी कीमत पर ही संतुष्ट होना पड़ रहा है क्योंकि उपज ही आधी रह गयी है. यही हाल चेरी, पीच और सेब का भी है, इनमें जब फूल निकलता है तो बर्फ गिर जाती है और फसल को खराब कर देती है. पिछले पांच-सात साल से यही हो है. अब तो हालात यह हो गए हैं कि एक  समय इन किस्म की उपज की खेती से लाखों कमाने वाला किसान नरेगा योजना से अपना जीवन यापन करने को मजबूर है. ऐसी नौबत आने की वजह भी है. केसर एक ऐसा पौधा है जो कृतिम सिंचाई से नहीं उग सकता. मतलब उगने के लिए उसे सिर्फ बारिश की सींचाई ही चाहिए. पिछले आठ-नौ साल से समय पर बारिश ही नहीं हो रही है, जिस वजह से इसकी उपज कम होती जा रही है.
यह हमें समझना होगा कि फसलें खत्म होने की वजह से घाटी की अर्थव्यवस्था भी ख़त्म हो जाएगी क्योंकि यहाँ की करीब ९५ प्रतिशत आबादी जल धाराओं से सम्बद्ध काम पर ही निर्भर है. जल धाराओं के ख़त्म होने के साथ ही ग्लेशियर्स का तेजी से पिघलना भी खतरे की ओर संकेत है. २०१४ में बाढ़ ने तबाही मचाई, २०१५  में बहुत ज्यादा बारिश हुई और २०१६ में बिलकुल बारिश नहीं हुई. इन्ही कारणों की वजह से घाटी में समय रहते कदम उठाने की ज़रूरत है. नहीं तो हम इस धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को सिर्फ किताबों में ही पढ़ेंगे.

Thursday, November 9, 2017

स्मोग चल रहा है

                                                   
                                                    
दिल्ली एनसीआर में हवा की खतरनाक स्तिथि ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. पिछले कुछ  साल से ठण्ड के मौसम के शुरू होते ही ऐसी स्तिथि उत्पन्न हो रही है. लोग भेड़चाल में काम की तलाश में दिल्ली एनसीआर का रुख कर रहे हैं. तरक्की किसको अच्छी नहीं लगती, लेकिन अपने स्वास्थ्य की बाजी लगाना कहाँ तक सही है.

दिल्ली एनसीआर में इस कदर हवा में जहर घुल चूका है कि अब उसकी तुलना गैस चैम्बर से की जा रही है. इसकी तीव्रता इसी बात से लगाई जा सकती है कि स्कूलों को बंद कर दिया गया है, लोगों की ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है. घर से ही ऑफिस का काम करवाया जा रहा है. लेकिन हवा में घुले ज़हर से खुद को बचाने के लिए एक और दायरा बना लेना कोई हल नहीं हो सकता.

 यही नहीं दिल्ली में कुछ समय पहले तक स्वस्थ्य रहने के लिए सुबह की सैर के सलाह दी जाती थी लेकिन अब उसके विपरीत दिन में सूरज के चमकने के बाद ही बाहर निकलने की सलाह दी जा रही है. कुदरत के विपरीत यह  स्तिथि पैदा करने वाला खुद इंसान ही है. अंधाधुंध चीज़ों का उपयोग, जंगलों की कटाई, कल कारखानों का का धुंआ  इसके मुख्य कारणों में से एक है. कचरे का सही से निस्तारण नहीं होना, कचरा जलाना, वाहनों का प्रदूषण भी वजह हैं. यही नहीं दिल्ली का खत्ताघर तो जलता ही रहता है. ऐसे में आप शुद्ध हवा की कैसे अपेक्षा कर सकते हैं. हर साल तेजी से बढ़ते वाहनों पैर लगाम लगाना ज़रूरी है.

ऐसा  नहीं है कि स्तिथि को बेहतर करने के लिए काम नहीं हुए. काम हुए और हो भी रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं हैं. पिछले बीस सालों में कोयले से चलने वाले कल कारखाने हटाए गए, सीएनजी आधारित वाहन भी सड़को पर दौड़ रहे हैं. लगातार पेड़ पौधे भी रोपे जा रहें हैं. यहाँ तक तो सब ठीक है लेकिन परेशानी खडी होती है इन रोपे गए पौधों की देखभाल को लेकर. लोग पेड़ लगाने और लगवाने आ तो जाते हैं लेकिन फिर कोई इनकी सुध नहीं लेता, नतीजतन वे सुखकर मर जाते हैं. इसलिए निश्चित तौर  युद्ध स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है.

जहरीली हवा का एक कारण है खेत में फसल के कटान के बाद बचे अवशेषों को जलाना. बार बार चेतावनी के बाद भी खेत को जलाने से सबसे ज़यादा प्रदूषण हो रहा है. लेकिन किसान भी क्या करे, उसके पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है. फसल कटने के बाद खेत को नयी फसल के लिए तैयार करने के लिए अवशेषों को जलाना ही सबसे आसान और सस्ता तरीका है. इसके लिए बाजार में मिलने वाली मशीने तो लाखों की आती हैं, वो एक साधारण किसान कैसे खरीद सकता है, इस पर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए.

जरा सोचिये, इतनी तरक्की करने के बाद भी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ्य वातावरण नहीं दे पाए तो क्या फायदा. हाल ही  में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिपोर्ट जारी कर बताया है कि दिल्ली में अगर हवा की यही  स्तिथि बनी रही तो बच्चों को  दिल की बीमारी जैसा गंभीर रोग हो सकता है. सोचिये, हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैं, जहरीली हवा की वजह से वे बहार नहीं जा सकते, खेल नहीं सकते, प्रकृति को करीब से नहीं देख सकते, उसे  महसूस नहीं कर सकते. हम कब तक बच्चों और खुद को घर की चहारदीवारी में कैद कर जहरीली हवा से बचा पायेंगें और अपनी की गयी तरक्की पैर मिया मिट्ठू बनते रहेंगे.  महज घर में एयर प्यूरिफायर क्या हमें ताउम्र निरोगी रखने की गारंटी दे सकतें हैं? निश्चित तौर पर युद्ध स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है, सरकारी स्तर पर भी और निजी स्तर पर भी. 



Thursday, October 12, 2017

Lets celebrate unity in diversity

         सैर कर  दुनिया की ग़ालिब
         ज़िंदगानी फिर कहाँ
         ज़िंदगानी गैर रही तो
         नौजवानी फिर कहाँ

Meaning, "Let's explore this world while we can, Who knows how long we may live
And even if we are alive, how long are we going to remain young …"

Man is widely travelled and it is his this habit that he has explored innumerable hidden beauties and surprises of nature. It is this mindset of a man which enable him to go to the extreme and enjoy the known and unknown aspect of this earth. Still much more is to be discovered.
Most of the countries of this world are blessed with natural beauties. Our country is one of them. With a changeable climatic zone, India has the most vivid natural treasures of the world. From Kashmir to Kanya Kumari and from Kutchh to North-East, India is blessed with architectural surprises with vast species of fauna and flora. Since India's culture gets changed with every state and dialect with some kilometers, the country is a surprise for people around the world. To explore India, people travel to this pot of unique culture and natural beauty from ages. From Huang Tsang to Vasco de Gama, people have been travelling to this land for its vividity. As Indians believe in "Atithi devo bhava" meaning guest is God, we are the best to host around the world, travellers are treated with immense love and services. This is how travel and tourism have emerged as an important business. The tourism sector is continuously exploring for centuries because of the travelling nature of man. In the present scenario too, people are much more excited to see the world and want to explore new sites. Besides foreigners, Indian too love to explore their own country. Mostly Indian travellers are inclined towards religious tourism.
Tourism is one of the most happening business in the context of our country since it provides maximum employment to its vast population where unemployment is a curse. To explore more in the travel and tourism industry, the Government of India is celebrating 'Paryatan Parv' from 5-25th October 2017. The objective of the program is to draw focus on the benefits of tourism, showcase the cultural diversity of the country and reinforce the principle of "Tourism for All".
Several programs are being organised for the awareness of tourism. Cultural programs, exhibitions showcasing handlooms, handicrafts, and cuisine, artisans workshops at different locations, competitions for students, sensitisation programs for tourism service providers, yoga demonstrations, etc. are being organised.
Tourism is associated with each and every person. 10-20% of India's GDP is dependent on tourism sector. It generates about 12-13% of employment. It is interesting to share that one hotel gives employment to 4 people. It generates a sustainable economy. UN declares 2017 as the International year of sustainable tourism.
This time, the emphasis is on to develop up local tourism to generate employment for youth. Here, the industry also needs youth who are capable of thinking out of the box and could come up with innovative ideas. There are vast avenues in tourism. To make most from tourism public-private sector needs to be work along. In this fast-changing world, digital and start-up India can make a big difference in the field of tourism.
You can also do your bit in this festival by exploring new places around the country. Check out various offers given by travelling companies for not so popular places. Reach out to that place, share its pictures, write your experience on your social media account or you can even make a video and upload it to various platforms. If you liked that place motivate others to visit it.

vintee.sharma@gmail.com