दिल्ली एनसीआर में हवा की खतरनाक स्तिथि ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. पिछले कुछ साल से ठण्ड के मौसम के शुरू होते ही ऐसी स्तिथि उत्पन्न हो रही है. लोग भेड़चाल में काम की तलाश में दिल्ली एनसीआर का रुख कर रहे हैं. तरक्की किसको अच्छी नहीं लगती, लेकिन अपने स्वास्थ्य की बाजी लगाना कहाँ तक सही है.
दिल्ली एनसीआर में इस कदर हवा में जहर घुल चूका है कि अब उसकी तुलना गैस चैम्बर से की जा रही है. इसकी तीव्रता इसी बात से लगाई जा सकती है कि स्कूलों को बंद कर दिया गया है, लोगों की ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है. घर से ही ऑफिस का काम करवाया जा रहा है. लेकिन हवा में घुले ज़हर से खुद को बचाने के लिए एक और दायरा बना लेना कोई हल नहीं हो सकता.
यही नहीं दिल्ली में कुछ समय पहले तक स्वस्थ्य रहने के लिए सुबह की सैर के सलाह दी जाती थी लेकिन अब उसके विपरीत दिन में सूरज के चमकने के बाद ही बाहर निकलने की सलाह दी जा रही है. कुदरत के विपरीत यह स्तिथि पैदा करने वाला खुद इंसान ही है. अंधाधुंध चीज़ों का उपयोग, जंगलों की कटाई, कल कारखानों का का धुंआ इसके मुख्य कारणों में से एक है. कचरे का सही से निस्तारण नहीं होना, कचरा जलाना, वाहनों का प्रदूषण भी वजह हैं. यही नहीं दिल्ली का खत्ताघर तो जलता ही रहता है. ऐसे में आप शुद्ध हवा की कैसे अपेक्षा कर सकते हैं. हर साल तेजी से बढ़ते वाहनों पैर लगाम लगाना ज़रूरी है.
ऐसा नहीं है कि स्तिथि को बेहतर करने के लिए काम नहीं हुए. काम हुए और हो भी रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं हैं. पिछले बीस सालों में कोयले से चलने वाले कल कारखाने हटाए गए, सीएनजी आधारित वाहन भी सड़को पर दौड़ रहे हैं. लगातार पेड़ पौधे भी रोपे जा रहें हैं. यहाँ तक तो सब ठीक है लेकिन परेशानी खडी होती है इन रोपे गए पौधों की देखभाल को लेकर. लोग पेड़ लगाने और लगवाने आ तो जाते हैं लेकिन फिर कोई इनकी सुध नहीं लेता, नतीजतन वे सुखकर मर जाते हैं. इसलिए निश्चित तौर युद्ध स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है.
जहरीली हवा का एक कारण है खेत में फसल के कटान के बाद बचे अवशेषों को जलाना. बार बार चेतावनी के बाद भी खेत को जलाने से सबसे ज़यादा प्रदूषण हो रहा है. लेकिन किसान भी क्या करे, उसके पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है. फसल कटने के बाद खेत को नयी फसल के लिए तैयार करने के लिए अवशेषों को जलाना ही सबसे आसान और सस्ता तरीका है. इसके लिए बाजार में मिलने वाली मशीने तो लाखों की आती हैं, वो एक साधारण किसान कैसे खरीद सकता है, इस पर सरकार को संज्ञान लेना चाहिए.
जरा सोचिये, इतनी तरक्की करने के बाद भी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ्य वातावरण नहीं दे पाए तो क्या फायदा. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिपोर्ट जारी कर बताया है कि दिल्ली में अगर हवा की यही स्तिथि बनी रही तो बच्चों को दिल की बीमारी जैसा गंभीर रोग हो सकता है. सोचिये, हम आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैं, जहरीली हवा की वजह से वे बहार नहीं जा सकते, खेल नहीं सकते, प्रकृति को करीब से नहीं देख सकते, उसे महसूस नहीं कर सकते. हम कब तक बच्चों और खुद को घर की चहारदीवारी में कैद कर जहरीली हवा से बचा पायेंगें और अपनी की गयी तरक्की पैर मिया मिट्ठू बनते रहेंगे. महज घर में एयर प्यूरिफायर क्या हमें ताउम्र निरोगी रखने की गारंटी दे सकतें हैं? निश्चित तौर पर युद्ध स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है, सरकारी स्तर पर भी और निजी स्तर पर भी.